अंगारों पर चलता जाए
बिना रुके जो बढ़ता जाए
घोर भयावह अंधियारे में
राह नई इक गढ़ता जाए
पथिक वही है...
तपती-जलती बंजर भू पर
शूल भरे रस्तों के ऊपर
मक्कारों के चक्रव्यूह में
बिना अस्त्र जो लड़ता जाए
पथिक वही है...
सूरज की किरणों से लड़कर
लहरों का भी वेग कुचलकर
मीलों फैले सहराओं में
आंधी बनकर उड़ता जाए
पथिक वही है...
मन के मोह-पाश को छोड़
जीवन-मरण का बंधन तोड़
अनसुलझे इस भवसागर में
बन संन्यासी बढ़ता जाए
पथिक वही है...