आखिर किस बात से डरते हो?
आवाज़ से डरते हो?
ये आवाज़ तो भूखे पेट की है
शोषण के ख़िलाफ़ है
ये आवाज़ तो सच की है
तो क्या सच से डरते हो?
सच तो कभी छिपता नहीं
झुकता नहीं
मुड़ता नहीं
झूठ को बेनकाब करता है
तो क्या बेनकाब होने से डरते हो?
जो बेनकाब हो भी गए, तो क्या?
एक चेहरा ही तो सामने आएगा
अपना ही चेहरा...
तो क्या अपने चेहरे से डरते हो?
अच्छा! मतलब ख़ुद से ही डरते हो!!
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